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Red Fort attack – : लाल किला आतंकी हमले पर सुप्रीम कोर्ट ने दोषी आरिफ की फांसी की सजा पर फिर लगाई मुहर 

नई दिल्ली। हाई कोर्ट ने साल 2000 में लाल किले पर हमले को भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर सीधा हमला साबित करते हुए इसके लिए दोषी प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी मो. आरिफ उर्फ ​​अशफाक की मौत की सजा के खिलाफ दायर उसकी पुनर्विचार याचिका को गुरुवार को खारिज कर दिया।

चीफ जस्टिस यू. यू. ललित और न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने पाकिस्तानी नागरिक आरिफ को हत्या, अपराधिक, साजिश और देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का अपराध करने के मामले में दी गई मौत की सजा बरकरार रखने का फैसला सुनाया।

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अदालत के समक्ष प्रस्तुत तथ्यों से स्पष्ट होता है कि यह मामला भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर हमले का है। इस निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।

जज ने 2008 वाले आतंकी अजमल का ज़िकर करा

पीठ ने मुंबई में 2008 के आतंकी हमले के मामले में मोहम्मद अजमल अमीर कसाब के मामले में 2012 के शीर्ष अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए फैसले में कहा कि जब आतंकवादी कृतियों से भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को चुनौती मिलती है तो ऐसे कृतियों को सबसे अधिक पीड़ादायक माना जाता है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की दलीलों के संदर्भ में कहा कि यह अच्छी तरह स्वीकार किया जाता है की मौत की सजा देने से पहले सभी पहलुओं पर ध्यान का रखा जाना चाहिए।

पीठ ने गुरुवार को दूसरी बार पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा कि अदालत के समक्ष उपलब्ध तथ्यों में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे याचिकाकर्ता की सजा कम करने की परिस्थिति के रूप में लिया जा सके।

साल 2005 में सुनाई थी मौत की सजा

साल 2005 में निचली अदालत ने आरिफ को दोषी ठहराते हुए उसे मौत की सजा सुनाई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2007 में निचली अदालत के फैसले को उचित कराते हुए सजा की पुष्टि की थी। इसके बाद शीर्ष अदालत ने अगस्त 2011 में आरिफ को मौत की सजा देने के फैसले की पुष्टि की थी तथा बाद में उसकी पुनर्विचार याचिका पहली बार खारिज कर दी थी।

आरिफ ने शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के 2014 के एक फैसले का हवाला देते हुए 2016 में दूसरी बार पुनर्विचार याचिका दायर की। 2014 में संविधान पीठ ने फांसी की सजा सुनाए गए दोषियों की याचिकाओं की सुनवाई‌ खुली अदालत में करने का फैसला सुनाया था। इसी को आधार बनाते हुए आरिफ ने फिर से याचिका दायर की थी।

लाल किले में भारतीय सेना के बैरक पर 22 दिसंबर 2000 की रात हुए इस आतंकी हमले में सेना के तीन जवान शहीद हो गए थे। आतंकवादियों ने लाल किले में घुसकर अंधाधुंध फायरिंग की थी।

गौरतलब है कि आरिफ उन आतंकवादियों में शामिल था, जिसने लाल किले में घुसकर वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों पर अंधाधुंध फायरिंग की थी। आतंकवादी आरिफ को घटना के तीन दिन बाद दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था।